6071
इधर-उधर, यहाँ-वहाँ हैं,
बिजलियाँ ही बिजलियाँ...
चमन-चमन कहाँ फिरूँ मैं,
आशियाँ लिये हुए.......
6072
अहले-चमनको,
कैदे–कफसकी हैं
आरजू...
सैयादसे भी बढ़के,
सितम बागबाँके हैं.......
ताजवर नजीबाबादी
6073
फूल वही, चमन वही,
फर्क नजर–नजरका हैं...
अहदे-बहारमें क्या था,
दौरे-खिजाँमें क्या नहीं...!
जिगर मुरादाबादी
6074
यह सोच ही रहे थे
कि,
बहार खत्म हुई;
कहाँ चमनमें,
निशेमन बने या न
बने...
जलील मानिकपुरी
6075
रस्मे-दुनिया हैं,
कोई खुश हो, कोई आबाद हो...
जब उजड़ जाये चमन तो,
कफस आबाद हो.......