24 June 2020

6071 - 6075 बिजलियाँ आशियाँ चमन आरजू फर्क नजर बहार निशेमन आबाद कफस चमन शायरी


6071
इधर-उधर, यहाँ-वहाँ हैं,
बिजलियाँ ही बिजलियाँ...
चमन-चमन कहाँ फिरूँ मैं,
आशियाँ लिये हुए.......

6072
अहले-चमनको,
कैदे–कफसकी हैं आरजू...
सैयादसे भी बढ़के,
सितम बागबाँके हैं.......
ताजवर नजीबाबादी

6073
फूल वही, चमन वही,
फर्क नजर–नजरका हैं...
अहदे-बहारमें क्या था,
दौरे-खिजाँमें क्या नहीं...!
                जिगर मुरादाबादी

6074
यह सोच ही रहे थे कि,
बहार खत्म हुई;
कहाँ चमनमें,
निशेमन बने या न बने...
जलील मानिकपुरी

6075
रस्मे-दुनिया हैं,
कोई खुश हो, कोई आबाद हो...
जब उजड़ जाये चमन तो,
कफस आबाद हो.......

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