6051
यह देखकर कि बर्कका रूख,
इधर को नहीं...
निकले तलाशे-बर्कमें,
खुद आशियाँसे हम.......!
6052
बर्क क्या बर्बाद,
कर सकती हैं मेरा आशियाँ...
बल्कि यूँ कहिए
कि,
रौशन आशियाँ हो जायेगा...!
6053
निगाहे-शौकको,
शाखे-निहाले-गुलकी तलाश...
हवाए-ए-तुन्दकी यह जिद,
कि आशियाँ न बने.......
शाहजहाँपुरी
6054
खताओंपर
खतायें,
हो रही थीं
नावक-अफगनसे...
इधर तीरोंसे बनता जा
रहा था,
आशियाँ मेरा.......
6055
जफा सैयादकी अहले-वफाने,
रायगां कर दी...
कफसकी जिन्दगी,
वक्फे-खयाले-आशियाँ कर दी...!
आनन्द नारायण मुल्ला
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