29 June 2020

6096 - 6100 साँस गुलशन रिहाई मोहब्बत फिक्रे रिहाई आबोदाना दाम गुनाह कफस शायरी


6096
असीरानेकफसकी,
आपबीती पूछते क्या हो...
यहाँ अम्न कज्जकोंसे,
बदतर पासबाँ देखे.......
                        अम्न लखनवी

6097
मेरे ताइरे-कफसको,
नहीं बागबाँसे रंजिश...
मिले घरमें आबोदाना तो,
यह दाम तक न पहूंचे.......
शकील बदायुनी

6098
गनीमत हैं कफस,
फिक्रे-रिहाई क्यों करें हमदम;
नहीं मालूम अब,
कैसी हवा चलती हो गुलशनमें...
                           साकिब लखनवी

6099
साँसोका पिंजरा किसी दिन टूट जायेगा,
ये मुसाफिर किसी राहमें छूट जायेगा,
अभी जिन्दा हूँ तो बात लिया करो,
क्या पता कब हमसे खुदा रूठ जायेगा ll

6100
अब इससे भी बढ़कर,
गुनाह--आशिकी क्या होगा...
जब रिहाईका वक्त आया तो,
पिंजरेसे मोहब्बत हो चुकी थी.......!

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