9 June 2020

5991 - 5995 दिल इश्क़ दर्द राहत ज़िंदगी ज़माने चाहत इनकार मय आफ़त सुकून शायरी



5991
तेरे होनेसे अब राहत नहीं,
सुकून मेरा अब वाहिदमें...
अब इस दिलको,
तेरी चाहत नहीं.......

5992
साहिलके सुकूनसे,
किसे इनकार हैं लेकिन;
तूफ़ानसे लड़नेमें,
मज़ा ही कुछ और हैं ll

5993
ये तेरे इश्क़का झोंका,
कितना सुकून देता हैं...
दर्द चाहे कितना भी हो,
दिलपर मरहम देता हैं...
दिल्लगीमें तेरी,
खो चुके हैं कुछ इस कदर की...
सातों सुरोंको छोड़कर,
मन तेरेही सुरमें गाने लगता हैं...!

5994
हमको तो मिल सका,
फ़क़त इक सुकून--दिल...
ज़िंदगी वरना,
ज़मानेमें क्या था.......

5995
मय-कदा हैं,
यहाँ सुकूँसे बैठ l
कोई आफ़त,
इधर नहीं आती ll
   अब्दुल हमीद अदम

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