12 June 2020

6011 - 6015 रौशनी आसमान घटा हुक्म शीशा गम तलब मयकश बारिश शायरी


6011
घटा देखकर ख़ुश हुईं लड़कियाँ,
छतोंपर खिले फूल बरसातके...
                                  मुनीर नियाज़ी

6012
आसमान पर छा गई,
घटा घोर-घनगोर...
जाएँ तो जाएँ कहाँ,
वीरानेमें शोर...
भगवान दास एजाज़

6013
बरसी वहीं वहीं पर,
समन्दर थे जिस जगह...
ऊपरसे हुक्म था तो,
घटाएँ भी क्या करें...!

6014
मयकशो देर हैं,
क्या दौर चले बिस्मिल्लाह...
आई हैं शीशा-ओ-साग़रकी,
तलबगार घटा.......!
      आग़ा अकबराबादी

6015
इन्हीं गमकी घटाओंसे,
खुशीका चाँद निकलेगा;
अंधेरी रातके पर्दोंमें,
दिनकी रौशनी भी हैं ll

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