6036
उट्ठा जो अब्र,
दिलकी उमंगें चमक उठीं...
लहराईं बिजलियाँ तो,
मैं लहराके पी गया.......
एहसान दानिश
6037
तड़प जाता हूँ
जब,
बिजली चमकती देख लेता
हूँ l
कि इससे मिलता-जुलतासा,
किसीका मुस्कुराना हैं ll
ग़ुलाम मुर्तज़ा कैफ़ काकोरी
6038
क़फ़सकी तीलियोंमें,
जाने क्या तरकीब रक्खी हैं...
कि हर बिजली,
क़रीब-ए-आशियाँ मालूम होती हैं...!
सीमाब अकबराबादी
6039
ये अब्र हैं
या,
फ़ील-ए-सियह-मस्त हैं
साक़ी...
बिजलीके
जो हैं पाँवमें,
ज़ंजीर हवा पर.......
शाह नसीर
ज़ब्त-ए-नालासे,
आज काम लिया...
गिरती बिजलीको,
मैं ने थाम लिया...!!!
जलील मानिकपूरी
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