9 June 2020

5996 - 6000 दिल दीवाने बे-क़रार होश महफ़िल ज़रूरत जहन वजह सुकून शायरी



5996
सुना हैं तेरी महफ़िलमें,
सुकून--दिल भी मिलता हैं...
मगर हम जब तिरी महफ़िलसे आए,
बे-क़रार आए.......

5997
बकद्रे-होश हर इकको,
यहाँ रंज मिलता हैं...
सुकूनसे रहते हैं,
यहाँ सिर्फ दीवाने...!

5998
थोड़ा सुकून भी,
ढुँढिए साहब...
ये ज़रूरते तो,
कभी खत्म होगी...

5999
चुप रहना,
कितना सुकून देता हैं...
खुदको भी और,
दूसरोंको भी.......

6000
किसीको याद करनेकी,
वजह नहीं होती हर बार...
जो सुकून देते हैं वो,
जहनमें जिया करते हैं...!

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