15 June 2020

6021 - 6025 रौशनी बिजली निगह शराब पत्थर निशाँ आशियाना बारिश शायरी


6021
फ़रेब-ए-रौशनीमें आने वालो,
मैं न कहता था कि,
बिजली आशियानेकी,
निगहबाँ हो नहीं सकती...
                       शफ़ीक़ जौनपुरी

6022
हर एक सम्त,
जहाँ पत्थरोंकी बारिश हैं,
वहाँ यह हुक्म कि,
शीशेका कारोबार करें...

6023
बारिश शराब-ए-अर्श हैं,
ये सोच कर अदम...
बारिशके सब हुरूफ़को,
उल्टाके पी गया...
                अब्दुल हमीद अदम

6024
क्या कहूँ दीदा-ए-तर,
ये तो मिरा चेहरा हैं...
संग कट जाते हैं,
बारिशकी जहाँ धार गिरे...
शकेब जलाली

6025
अब के बारिशमें तो,
ये कार-ए-ज़ियाँ होना ही था;
अपनी कच्ची बस्तियोंको,
बे-निशाँ होना ही था ll
                        मोहसिन नक़वी

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