19 June 2020

6046 - 6050 वास्ते तबाही तड़प परवाह निशेमन आशियाना शान रौशनी नजर बिजली शायरी


6046
इसी वास्ते हैं पैहम नजर,
इस पै बिजलियोंकी...
हैं सजी हुई गुलोंसे,
मेरी शाखे आशियाना...

6047
किसको होती हैं अता,
इस शानकी बर्बादियाँ...
आशियाँ हम क्या बचाते,
बिजलियाँ देखा किए.......

6048
रौशनीमें और दो तिनके,
जमा कर लेता हूँ मैं...
कौंधती हैं जब बिजली,
अपने निशेमनके करीब...!
                         असर उस्मानी

6049
मुझको तो खुद,
तबाहियाँ अपनी पसंद हैं...
बिजली तड़प रही हैं,
क्यों आशियाँसे दूर...!!

6050
जल भी जाये नशेमन,
तो परवा
ह नहीं...
बिजलियोंसे मेरा,
दोस्ताना तो हैं.......!!!

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