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इसी वास्ते हैं पैहम नजर,
इस पै बिजलियोंकी...
हैं सजी हुई गुलोंसे,
मेरी शाखे आशियाना...
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किसको होती हैं
अता,
इस शानकी बर्बादियाँ...
आशियाँ हम क्या
बचाते,
बिजलियाँ
देखा किए.......
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रौशनीमें और दो तिनके,
जमा कर लेता हूँ मैं...
कौंधती हैं जब बिजली,
अपने निशेमनके करीब...!
असर उस्मानी
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मुझको तो खुद,
तबाहियाँ
अपनी पसंद हैं...
बिजली तड़प रही
हैं,
क्यों आशियाँसे दूर...!!
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जल भी जाये नशेमन,
तो परवाह नहीं...
बिजलियोंसे
मेरा,
दोस्ताना
तो हैं.......!!!