23 June 2020

6066 - 6070 दिल जमाना रहजन आबरू बागबाँ निगाह बहार क़ाँटे आशियाँ गुलिस्ताँ शायरी


6066
ये शाख काटी, वो शाख काटी,
इसे उजाड़ा, उसे उजाड़ा;
यही हैं शेवा जो बागबाँका,
तो हम गुलिस्ताँसे जा रहे हैं...
                       नफीस सन्देलवी

6067
सुनते हैं कि क़ाँटोंसे गुलतक,
हैं राहमें लाखों वीराने...
कहता हैं मगर यह अज्मे-जुनू,
सहरासे गुलिस्ताँ दूर नहीं...!

6068
जमाना जो आतिशफिशाँ हैं,
तो क्या गम...
हम आतिशकदेको,
गुलिस्ताँ करेंगे.......!
                          शकील बदायुनी

6069
इस नये दौरमें देखे हैं वो रहजन मैंने,
जो बहारोंको गुलिस्ताँसे चुरा ले जाए l
दे निगाहोंको जो धोखा तो पता भी न चले,
चाँदनी अंजुमें ताबाँसे उठा ले जाए l
इलाही आबरू रखना बड़ा नाजुक जमाना हैं,
दिलोंमें बुग्ज रहता हैं बजाहिर दोस्ताना हैं ll

6070
हमने अपने आशियाँके वास्ते,
जो चुभें दिलमें वही कांटे चुने...
                            रियाज खेराबादी

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