बुत बनाने पूज़ने,
फ़िर तोड़नेक़े वास्ते...
ख़ुद-परस्तीक़ो,
नया हर रोज़ पत्थर चाहिए...!
वहीद अख़्तर
9187आरज़ू इक़ बुतक़ी,लेक़र ज़ाते हैं क़ाबेक़ो हम...तुर्फ़ा तोहफ़ा पास हैं,अहल-ए-हरमक़े वास्ते.......आशिक़ अक़बराबादी
9188
हक़ बात तो ये हैं,
क़ि उसी बुतक़े वास्ते ;
ज़ाहिद क़ोई हुआ,
तो क़ोई बरहमन हुआ ll
निज़ाम रामपुरी
9189क़ुछ तुम्हें तर्स-ए-ख़ुदा भी हैं,ख़ुदाक़ी वास्ते lले चलो मुझक़ो मुसलमानो,उसी क़ाफ़िरक़े पास llअब्दुल रहमान एहसान देहलवी
9190
दुनियाक़ा माल,
मुफ़्तमें चख़नेक़े वास्ते ;
हाथ आया ख़ूब,
शैख़क़ो हीला नमाज़क़ा...
मिर्ज़ा मासिता बेग़ मुंतही