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6 January 2021

7001 - 7005 मसर्रत सजा बात तमन्ना ज़िंदगी रिश्तें ख़ुशी ग़म शायरी

 

7001
मसर्रत ज़िंदगीका,
दूसरा नाम...
मसर्रतकी तमन्ना,
मुस्तक़िल ग़म.......

7002
अहबाबको दे रहा हूँ धोका,
चेहरेपें ख़ुशी सजा रहा हूँ...!

7003
छोटीसी ज़िन्दगी हैं,
हर बातमें खुश रहो l
कल किसने देखा हैं,
बस अपने आजमें ख़ुश रहो ll
               
7004
जरुरी नहीं की,
हर रिश्तोंका अंत लड़ाई ही हो;
कुछ रिश्तें किसीकी,
ख़ुशीके लिएभी छोड़ने पड़ते हैं ll

7005
कोई काश उनसे पूछे,
जो ग़मोंसे भागते हैं...
वो कहाँ पनाह लेंगे,
जो ख़ुशी रास आई...