Showing posts with label महफ़िल ज़माना शिकायत मौत कब्र आँख शायरी. Show all posts
Showing posts with label महफ़िल ज़माना शिकायत मौत कब्र आँख शायरी. Show all posts

30 October 2017

1891 - 1895 दुनियाँ जादू चाह मुश्किल चेहरे नकाब वक्त पलक नींद ताल्लुक उम्र सोच अफसोस शायरी


1891
"मुश्किल वक्त",
दुनियाँका सबसे बड़ा जादूगर हैं...!
जो एक पलमें...
आपके चाहने वालोंके,
चेहरेसे नकाब हटा देता हैं...!!

1892
मेरी पलकोंका अब नींदसे,
कोई ताल्लुक नहीं रहा...!
मेरा कौन हैं...?
ये सोचनेमें रात गुज़र जाती हैं...!!!

1893
" हमने खुदासे  पुछ लिया,
की क्या हम कभी उन्हे भुला पायेंगे ?
खुदाने कहां बेशक, पर एक अफसोस हैं,
जितना तुझे वक्त लगेगा उसे भुलानेमें...
उतनी तो मैने तेरी उम्रभी नहीं लिखी......."

1894
दोस्तोंकी महफ़िल सजे ज़माना हो गया,
लगता हैं जैसे खुलके जिए ज़माना हो गया,
काश कहीं मिल जाए वो काफिला दोस्तोंका,
वो लम्हें बिताए ज़माना हो गया.......

1895
शिकायत "मौत" से नहीं ,
"अपनों" से थी मुझे...
जरासी आँख बंद क्या हुई...
वो कब्र खोदने लगे.......!