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19 July 2022

8886 - 8890 महफ़ूज़ इल्ज़ाम तलाश तमन्ना क़दम मंज़िल शौक़ शायरी

 

8886
अभी तो शौक़क़ी राहोंमें,
ख़ो ज़ाना भी मुमक़िन हैं...
क़ि ये राहें अभी महफ़ूज़ हैं,
इल्ज़ाम--मंज़िलसे.......
                        शाहिद सिद्दीक़ी

8887
वो मंज़िल-ग़ह--मज़नूँ हैं,
वो वादी--नज़्द l
रह-रव--शौक़--तमन्ना क़ी हैं,
राहें मसदूद ll
बशीर फ़ारूक़

8888
सख़्ती--राह ख़ींचिए,
मंज़िलक़े शौक़में...
आरामक़ी तलाशमें,
ईज़ा उठाइए.......
                  हैंदर अली आतिश

8889
सिर्फ़ इक़ क़दम उठा था,
ग़लत राह--शौक़में...
मंज़िल तमाम उम्र,
मुझे ढूँढती रही.......!
अब्दुल हमीद अदम

8890
नक़्श--पा--रफ़्तगाँसे,
रही हैं ये सदा...
दो क़दममें राह तय हैं,
शौक़--मंज़िल चाहिए.......