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19 March 2021

7286 - 7290 महबूब चाहत खबर बात क़सूर जज्बात जफ़ा याद बेवफ़ा गिला शिकवा शायरी

 

7286
तुम्हारे महबूब हजारों होंगे,
हमारे शैदा भी लाखों लेकिन...
तुमको शिवा मुझको शिवा,
गिला क़रोगे गिला रेंगे...

7287
क्या गिला क़रें उनकी बातोंका, 
क्या शिक़वा करें उन रातोंसे;
​​क़हें भला किसकी खता इसे हम, 
​​कोई खेल गया हैं मेरे जज्बातोंसे;
नींदें छीन रखी हैं तेरी यादोंने,
गिला तेरी दुरीसे करें या अपनी चाहतसे ll

7288
गिला लिखूँ मैं अगर,
तेरी बेवफ़ाईका...
लहूमें ग़र्क़ सफ़ीना,
हो आश्नाईका.......
          मोहम्मद रफ़ी सौदा

7289
शुक्र उसकी जफ़ाका,
हो सका...
दिलसे अपने हमें,
गिला हैं यह.......!

7290
तर्केतअल्लुकात,
खुद अपना सूर था...
अब क्या गिला कि,
उसको हमारी खबर नहीं...!
                       गोपाल मित्तल