7286
तुम्हारे महबूब हजारों होंगे,
हमारे शैदा भी लाखों लेकिन...
न तुमको शिक़वा न मुझको शिक़वा,
गिला क़रोगे गिला क़रेंगे...
7287क्या गिला क़रें उनकी बातोंका,क्या शिक़वा करें उन रातोंसे;क़हें भला किसकी खता इसे हम,कोई खेल गया हैं मेरे जज्बातोंसे;नींदें छीन रखी हैं तेरी यादोंने,गिला तेरी दुरीसे करें या अपनी चाहतसे ll
7288
गिला लिखूँ मैं अगर,
तेरी बेवफ़ाईका...
लहूमें ग़र्क़ सफ़ीना,
हो आश्नाईका.......
मोहम्मद रफ़ी सौदा
7289शुक्र उसकी जफ़ाका,हो न सका...दिलसे अपने हमें,गिला हैं यह.......!
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तर्के–तअल्लुकात,
खुद अपना क़सूर था...
अब क्या गिला कि,
उसको हमारी खबर नहीं...!
गोपाल मित्तल
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