21 March 2021

7301 - 7305 दिल ज़िंदगी मोहब्बत दर्द क़सूर ख़ता ग़म तकलीफ सज़ा शायरी


7301
हर इक मोड़पर,
हम ग़मोंको सज़ा दें...
चलो ज़िंदगीको,
मोहब्बत बना दें.......!
                सुदर्शन फ़ाकिर

7302
ये जब्र भी देखा हैं,
तारीख़की नज़रोंने...
लम्होंने ख़ता की थी,
सदियोंने सज़ा पाई...

7303
उसके दिलकी भी,
कड़ी दर्दमें गुज़री होगी...
नाम जिसने भी मुहब्बतका,
सज़ा रखा होगा.......!

7304
कसूर तो,
बहुत किये ज़िन्दगीमें...
पर सज़ा वहाँ मिली,
जहाँ बेक़सूर थे हम.......

7305
सज़ा देनी हमेभी आती हैं,
बेखबर...
पर कोई तकलीफसे गुज़रे,
ये हमे मंजूर नहीं.......

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