11 March 2021

7256 - 7260 लम्हा महफ़िल वजह दौलत बात दरार गर्दिश लाजवाब दोस्त यार शायरी

 

7256
इतना रोया हूँ ग़म--दोस्त,
ज़रासा हँसकर...
मुस्कुराते हुए लम्हातसे,
जी डरता हैं.......
                            हसन नईम

7257
तुम हमारी दोस्तीके,
चाहे कितने भी दरवाजे बंद कर लो;
हम वो दोस्त हैं जो,
दरारोंसे भी आएगें.......ll

7258
दौर--गर्दिशमें भी,
जीनेका मज़ा देते हैं...
चंद दोस्त हैं, जो वीरानोंमें भी,
महफ़िल सजा देते हैं...
सुनाई देती हैं अपनी हँसी,
उनकी बातोंमें
दोस्त अक्सर,
जीनेकी वजह देते हैं...ll

7259
ज़रूरी तो नहीं कि,
दौलतही अमीरीका पैमाना हो...
कुछ लोगोंके पास,
दोस्त भी होते हैं.......

7260
आदतें अलग हैं,
मेरी दुनिया वालोंसे...
कम दोस्त रखता हूँ,
पर लाजवाब रखता हूँ...!

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