25 March 2021

7316 - 7320 क़ातिल तन्हा सफर वक़्त करवट दास्तान बेवजह ग़ुरूर तकलीफ मोड़ शायरी

 

7316
देखोगे तो हर मोड़पें,
मिल जाएँगी लाशें...!
ढूँडोगे तो इस शहरमें,
क़ातिल मिलेगा.......!!!
         मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद

7317
कई मोड़ आएंगे,
अभी इस सफरमें...
और हर मोड़के साथ,
दास्तान बनती जाएगी...

7318
वक़्तकी करवटको,
कैसे बदलूँ...?
तुम बेवजह चले गए,
मुँह मोड़के.......

7319
यूँ तो मोड़ जिन्दगीमें,
कुछ ऐसे भी आएंगे;
तकलीफमें होगे तुम,
साथ निभाने वालेही,
तन्हा छोड़ जाएंगे.......

7320
ग़ुरूर हैं मुझमें,
तो तोड़कर दिखा l
मैं दरिया हूँ,
मेरा रास्ता मोड़कर दिखा ll

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