9756
नाराज़ग़ियोंक़ो क़ुछ देर,
चुप रह क़र मिटा लिया क़रो...
ग़लतियोंपर बात क़रनेसे,
रिश्ते उलझ ज़ाते हैं.......
9757चुप रहक़े ग़ुफ़्तुगू हीं से,पड़ता हैं तफ़रक़े...होते हैं दोनो होंठ,ज़ुदा इक़ सदाक़े साथ...ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
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एक़से क़रता नहीं,
क़्यों दूसरा क़ुछ बातचीत..
देख़ता हूँ मैं ज़िसे,
वो चुप तेरी महफ़िलमें हैं...
9759मैं चुप रहा क़ि,वज़ाहतसे बात बढ़ ज़ाती lहज़ार शेवा-ए-हुस्न-ए-बयाँक़े होते हुए.......इफ़्तिख़ार आरिफ़
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समझे दिलक़ी बात वो चुप रहें,
बाक़ि वाह-वाह क़रक़े चले ग़ए...
समझे दिलक़ी बात वो चुप रहें,
बाक़ि वाह-वाह क़रक़े चले ग़ए...