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1 October 2020

6566 - 6570 मोहब्बत इंतज़ार जान मौत जिंदा बेपनाह परवाह जिस्म रूह क़सम शायरी

 

6566
मौत बख्शी हैं जिसने,
उस मोहब्बतकी क़सम...
अबभी करता हूँ इंतज़ार,
बैठकर मजारमें.......

6567
कई झूठ बोले तुमने,
मेरीही क़सम खाकर;
मौतभी खूबसूरत बख्शी,
मेरे करीब आकर...

6568
कसमभी क्या क़सम थी...
मेरे मरनेके बादभी, जिंदा थी...!

6569
बेपनाह मोहब्बत करनेके बादभी.
सपने कहीं वादीयोमें डुब गये l
जहा उसने साथ चलनेकी क़सम खाई थी,
शायद बेपरवाह हमही थे l
जिस्मकी जगह हमने रूहको,
जान लगाई थी ll

6570
क़सम उसने कुछ,
ऐसी खाई मेरे लिए...
अपनी जानतक,
गवाँई उसने.......