6566
मौत बख्शी हैं जिसने,
उस मोहब्बतकी क़सम...
अबभी करता हूँ इंतज़ार,
बैठकर मजारमें.......
6567
कई झूठ बोले तुमने,
मेरीही क़सम खाकर;
मौतभी खूबसूरत बख्शी,
मेरे करीब आकर...
6568
कसमभी क्या क़सम थी...
मेरे मरनेके बादभी, जिंदा थी...!
6569
बेपनाह मोहब्बत
करनेके बादभी.
सपने कहीं वादीयोमें
डुब गये l
जहा उसने साथ चलनेकी
क़सम खाई थी,
शायद बेपरवाह हमही
थे l
जिस्मकी जगह हमने
रूहको,
जान लगाई थी ll
6570
क़सम उसने कुछ,
ऐसी खाई मेरे लिए...
अपनी जानतक,
गवाँई उसने.......
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