3 October 2020

6576 - 6580 दिल तन्हाँ जुदाई बात सितम सपना महफिल मौका तबस्सुम यकीन क़सम शायरी

 

6576
उनकी महफिलमें नसीर,
उनके तबस्सुमकी क़सम;
देखते रह गए हम,
हाथसे जाना दिलका...

6577
काश वो भी आकर हमसे कह दे,
मैं भी तन्हाँ हूँ...
तेरे बिन, तेरी तरह...
तेरी क़सम, तेरे लिए.......

6578
हमको क़सम तुम्हारी,
कुछ यकीन कर...
हम भी उफ़ करेंगे,
चाहे कोई सताले.......

6579
तुम बात करनेका,
मौका तो दो.......
क़समसे रूला देंगे तुम्हें,
तुम्हारेही सितम गिनाते गिनाते...

6580
वही सर्द रातें, वही फिर जुदाई...
सूना समां, और घेरे तन्हाई...
क़सम हैं तुम्हें, आज फिर ना कहना...
सपनोंमें मेरे तुम देना दिखाई.......

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