27 October 2020

6691 - 6695 सलाम गुनहगार निगाह लफ्ज़ पैगाम ज़ालिम हिना मेहँदी शायरी

 

6691
अल्लाह-रे नाज़ुकी,
कि जवाब--सलाममें...
हाथ उसका उठके रह गया,
मेहंदीके बोझसे.......
                        रियाज़ ख़ैराबादी

6692
हम गुनहगारोंके क्या,
ख़ूनका फीका था रंग...
मेहंदी किस वास्ते,
हाथोंपें रचाई प्यारे...?
मिर्ज़ा अज़फ़री

6693
कुश्ता--रंग--हिना हूँ मैं,
अजब इसका क्या...
कि मिरी ख़ाकसे मेहंदीका,
शजर पैदा हो.......
             मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

6694
मेहंदीके धोके मत रह ज़ालिम,
निगाह कर तू...
ख़ूँ मेरा दस्त-ओ-पा से,
तेरे लिपट रहा हैं.......
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

6695
तेरे मेहंदी लगे हाथोंपें,
मेरा नाम लिखा हैं...!
ज़रासे लफ्ज़में,
कितना पैगाम लिखा हैं...!!!

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