6691
अल्लाह-रे नाज़ुकी,
कि जवाब-ए-सलाममें...
हाथ उसका उठके रह गया,
मेहंदीके बोझसे.......
रियाज़ ख़ैराबादी
6692
हम गुनहगारोंके क्या,
ख़ूनका फीका था
रंग...
मेहंदी किस वास्ते,
हाथोंपें
रचाई प्यारे...?
मिर्ज़ा अज़फ़री
6693
कुश्ता-ए-रंग-ए-हिना हूँ मैं,
अजब इसका क्या...
कि मिरी ख़ाकसे मेहंदीका,
शजर पैदा हो.......
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
6694
मेहंदीके
धोके मत रह
ज़ालिम,
निगाह कर तू...
ख़ूँ मेरा दस्त-ओ-पा
से,
तेरे लिपट रहा
हैं.......
मुसहफ़ी
ग़ुलाम हमदानी
6695
तेरे मेहंदी लगे हाथोंपें,
मेरा नाम लिखा हैं...!
ज़रासे लफ्ज़में,
कितना पैगाम लिखा हैं...!!!
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