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दिलसे ख़याल-ए-यार,
भुलाया न जाएगा...
सीनेमें दाग़ हैं कि,
मिटाया न जाएगा.......
अल्ताफ़ हुसैन हाली
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उसे क़रीब मैं
पाता था,
जिसके होनेसे...
उसीने ज़ेह्नसे मेरा,
ख़याल छीन लिया.......
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दुनिया हैं ख़्वाब,
हासिल-ए-दुनिया ख़याल हैं...
इंसान ख़्वाब देख रहा हैं,
ख़यालमें.......
सीमाब अकबराबादी
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हैं आदमी बजाए
ख़ुद,
इक महशर-ए-ख़याल...
हम अंजुमन समझते हैं,
ख़ल्वत ही क्यूँ
न हो.......
मिर्ज़ा ग़ालिब
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औरतको चाहिए कि,
अदालतका रुख़ करे...
जब आदमीको सिर्फ़,
ख़ुदाका ख़याल हो.......!
दिलावर फ़िगार
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