8 October 2020

6601 - 6605 दिल नाम ग़म महफ़िल आँख क़सम शायरी

 

6601
सुनो, आँखोंके पास नहीं...
तो सही...
क़समसे दिलके बहोत,
पास हो तुम.......

6602
उसके साथ रहनेकी,
क़सम थी...
अब दूर हैं,
यही क़सक हैं.......

6603
इस डूबते सूरजकी क़सम,
इस दिलपें;
कोई नाम नहीं लिखा,
तेरे नामके बाद.......!

6604
दिल तुड़वाकर देखो,
क़समसे लिखना क्या...
महफ़िलको रुलानाभी,
सीख जाओगे.......!

6605
तुम अपना रंज--ग़म,
अपनी परेशानी मुझे दे दो...
तुम्हें ग़मकी क़सम,
इस दिलकी वीरानी मुझे दे दो...

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