10 October 2020

6611 - 6615 याद वक़्त ग़म दर्द बेताब जुदाई करवट क़सम नींद शायरी

 

6611
मैने करवट,
बदलके देखा हैं...
याद तो,
उस तरफ भी आती हैं.......!


6612
बेताब मैं ही नही,
दर्द-ए-जुदाईकी क़सम;
रोते तुम भी होंगे,
करवट बदल बदलकर.......
 
6613
सोचता रहा ये रातभर,
करवट बदल बदलकर...
जानें वो क्यों बदल गया,
मुझको इतना बदलकर...

6614
शाम-ए-ग़म,
करवट बदलताही नहीं...
वक़्त भी ख़ुद्दार हैं,
तेरे बग़ैर.......

6615
दो गजसे ज़रा ज़्यादा,
जगह देना कब्रमें मुझे...
किसीकी यादमें करवट बदले बिना,
मुझे नींद नहीं आती.......!

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