6651
किताब पढ़नेके लिए होती हैं,
उसमे सिर्फ़ तकते हो क्यों...
रात सोनेके लिए होती हैं,
ऱोज देर रात जगते हो क्यों...
6652
ऐ दिल, सो
जा कसमसे,
कोई नहीं, कोई
नहीं, कोई नहीं...
दरवाजा सिर्फ,
तेज हवासे खुला हैं.......
6653
वो ही करता और वो ही करवाता हैं...
क्यों बंदे तू इतराता हैं;
एक साँसभी नही हैं तेरे बसकी...
वोही सुलाता और वोही जगाता हैं...!
6654
कुछ लोग ख़यालोंसे,
चले जाएँ... तो
सोएँ;
बीते हुए दिन
रात,
न याद आएँ...
तो सोएँ ll
हबीब जालिब
6655
सो जाइए,
सभी तकलिफोंको सिरहाने रखकर...
सुबह उठतेही,
इन्हें फिरसे गले लगाना
हैं.......
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