18 October 2020

6651 - 6655 साँस कसम तकलिफ याद ख़याल सो जा सोने दो शायरी

 

6651
किताब पढ़नेके लिए होती हैं,
उसमे सिर्फ़ तकते हो क्यों...
रात सोनेके लिए होती हैं,
ऱोज देर रात जगते हो क्यों...

6652
ऐ दिल, सो जा कसमसे,
कोई नहीं, कोई नहीं, कोई नहीं...
दरवाजा सिर्फ,
तेज हवासे खुला हैं.......

6653
वो ही करता और वो ही करवाता हैं...
क्यों बंदे तू इतराता हैं;
एक साँसभी नही हैं तेरे बसकी...
वोही सुलाता और वोही जगाता हैं...!

6654
कुछ लोग ख़यालोंसे,
चले जाएँ... तो सोएँ;
बीते हुए दिन रात,
न याद आएँ... तो सोएँ ll
हबीब जालिब

6655
सो जाइए,
सभी तकलिफोंको सिरहाने रखकर...
सुबह उठतेही,
इन्हें फिरसे गले लगाना हैं.......

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