6631
नींद मिट्टीकी महक,
सब्ज़ेकी ठंडक...
मुझको अपना घर,
बहुत याद आ रहा हैं...
अब्दुल अहद साज़
6632
सो जाता हैं
फ़ुटपाठपें,
अख़बार बिछाकर...
मज़दूर कभी नींदकी,
गोली नहीं खाता...
मुनव्वर
राना
6633
नींदकी गोलियाँ खाकर,
सोता हैं ये शहर...
शायद इसलिए इसकी आँखे,
ज़रा देरसे खुलती हैं.......
6634
जाते हुए नोटोंने,
नरम लहजेसे कहा, ज़नाब...
नींद देते भी
हम हैं,
नींद लेते भी
हम हैं.......
6635
आई होगी किसीको,
हिज्रमें मौत...
मुझको तो,
नींद भी नहीं आती.......
अकबर इलाहाबादी
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