21 October 2020

6656 - 6660 दिल ज़माने बेवफ़ाई ज़िक्र याद अश्क आरज़ू आँख ख़याल शायरी

 
6656
तिरे ख़यालके हाथों,
कुछ ऐसा बिखरा हूँ...
कि जैसे बच्चा किताबें,
इधर उधर कर दे...
                       वसीम बरेलवी

6657
अश्क आँखमें फिर अटक रहा हैं,
कंकरसा कोई खटक रहा हैं;
मैं उसके ख़यालसे गुरेज़ाँ,
वो मेरी सदा झटक रहा हैं ll

6658
तेरा सोचना, मेरा मशगला...
तुझे देखना, मेरी आरज़ू...
मुझे दिन दे अपने ख़यालका,
मुझे अपने क़ुर्बकी रात दे.......!

6659
मैं अपने दिलसे निकालूँ,
ख़याल किस किसका...
जो तू नहीं तो कोई और,
याद आए मुझे.......
क़तील शिफ़ाई

6660
चला था ज़िक्र,
ज़मानेकी बेवफ़ाईका...!
सो गया हैं,
तुम्हारा ख़याल वैसेही...!!!
                       अहमद फ़राज़

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