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तिरे ख़यालके हाथों,
कुछ ऐसा बिखरा हूँ...
कि जैसे बच्चा किताबें,
इधर उधर कर दे...
वसीम बरेलवी
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अश्क आँखमें फिर अटक रहा हैं,
कंकरसा कोई खटक रहा हैं;
मैं उसके ख़यालसे गुरेज़ाँ,
वो मेरी सदा झटक रहा हैं ll
तेरा सोचना, मेरा मशगला...
तुझे देखना, मेरी आरज़ू...
मुझे दिन दे अपने ख़यालका,
मुझे अपने क़ुर्बकी रात दे.......!
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मैं अपने दिलसे निकालूँ,
ख़याल किस किसका...
जो तू नहीं तो कोई और,
याद आए मुझे.......
क़तील शिफ़ाई
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चला था ज़िक्र,
ज़मानेकी बेवफ़ाईका...!
सो आ गया हैं,
सो आ गया हैं,
तुम्हारा ख़याल वैसेही...!!!
अहमद फ़राज़