13 October 2020

6626 - 6630 दिल इश्क़ मोहब्बत दर्द ग़म याद आदत राह ज़माना नींद शायरी

 
6626
राह यूँ ही नामुकम्मल,
ग़म--इश्क़का फ़साना...
कभी मुझको नींद नहीं आयी,
कभी सो गया ज़माना.......

6627
रातोंके बाज़ारमें,
दुकान लगा रखी हैं यादोंने;
नींदका सारा,
कारोबार चौपट हैं.......!

6628
उतर जाती हैं जो जहनमें,
तो फिर जल्दी नींद नहीं आती...
ये कॉफ़ी और तुम्हारी यादें,
एक जैसी हैं.......

6629
वह एक तुम,
तुम्हें फूलोंपें भी न आई नींद !
वह एक मैं,
मुझे कांटोंपें भी इज्तिराब न था !!!
नैयर अकबराबाजदी

6630
उसको भी हमसे, मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं...
इश्क़ही इश्क़की क़ीमत हो, ज़रूरी तो नहीं...
नींद तो दर्दके बिस्तरपें भी सकती हैं,
उनके आगोशमें सर हो ये ज़रूरी तो नहीं...
मुस्कुरानेसे भी होता हैं, ग़में-दिल बयाँ...
मुझे रोनेकी आदत हो, ये ज़रूरी तो नहीं...

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