6646
कुछ ख़बर हैं तुझे,
ओ चैनसे सोने वाले...
रातभर कौन तिरी,
यादमें बेदार रहा......!
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
6647
गिरां गुज़रने लगा,
दौर-ए-इंतिज़ार
मुझे...
ज़रा थपकके सुला दे,
ख़याल-ए-यार
मुझे.......!
6648
इक आबला था, सो भी गया,
ख़ार-ए-ग़मसे फट...
तेरी गिरहमें क्या,
दिल-ए-अंदोह-गीं रहा...
शाह नसीर
6649
यूँ तो बिछड़के
तुझसे,
ना कभी ज़िक्र-ऐ-जुदाईकी
हमने...
पर सोकर कटी
हैं,
फिर कोई रात
कहाँ मुमकिन हैं...
6650
अकेला पा के मुझको,
याद उनकी आ तो जाती हैं...
मगर फिर लौटकर जाती नहीं,
मैं कैसे सो जाऊँ.......!
अनवर मिर्ज़ापुरी
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