6621
उफ़फ़फ़,
तेरी यादोंकी बदमाशी...
नींदको,
आखोंतक आने नहीं देती...
6622
अब भी आती
हैं तिरी,
यादपर इस कर्बके
साथ...
टूटती नींदमें जैसे,
कोई सपना देखा...
अख़तर इमाम रिज़वी
6623
दोनों आखोंमे अश्क दिया करते हैं,
हम अपनी नींद तेरे नाम किया करते हैं;
जब भी पलक झपके तुम्हारी समझ लेना,
हम तुम्हे याद किया करते हैं...!
6624
भरी रहें अभी
आँखोंमें,
उसके नामकी नींद...
वो ख़्वाब हैं तो,
यूँही देखनेसे गुज़रेगा.......
6625
नींदको तो मना लेंगे,
मगर...
तेरे इन ख़्वाबोंको,
सुलायेगा
कौन.......!
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