30 September 2020

6561 - 6565 दिल मोहब्बत जिंदगी याद चाँद आफ़ताब लाजवाब मुश्किल क़सम शायरी

 

6561
ज़हर मिलताही नहीं,
मुझको गर वरना...
क्या क़सम हैं तेरे मिलनेकी,
कि खा भी सकूँ.......
                                     साहिर

6562
मोहब्बतकी क़सम,
वो ऐसी नहीं थी...
वो मेरी थी मगर,
कहती नहीं थी.......

6563
बना लो उसे अपना,
जो दिलसे तुम्हे चाहता हैं l
खुदाकी क़सम ये चाहने वाले,
बड़ी मुश्किलसे मिलते हैं ll

6564
तुझे जिंदगीभर याद रखनेकी,
क़सम तो नहीं ली;
पर एक पलके लिए तुझे,
भुल जाना भी मुश्किल हैं...

6565
चौदहवींका चाँद हो,
या आफ़ताब हो...!
जो भी हो तुम, खुदाकी क़सम,
लाजवाब हो.......!!!

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