6446
सारा जहाँ मरीज,
मरज भी हैं लाइलाज...
पहचाने कौन दर्द,
दवाकी किसे खबर.......
6447
कलतक जो
मेरे,
हर मर्जका इलाज थी...
आज वहीं मेरा,
लाइलाज मर्ज हैं.......
6448
इश्क़का इलाज नहीं,
लाइलाज हैं ये मर्ज...
मुठ्ठीभर यादें और,
मिलता हैं बेहिसाब दर्द...
6449
फिराक इक-इकसे
बढ़कर,
चारासाजे
दर्द हैं लेकिन.......
यह दुनिया हैं यहाँ
हर दर्दका,
दरमां नहीं मिलाता.......
फिराक गोरखपुरी
6450
चारागरका चाहिए,
करना इलाज...
उसको भी अपनासा,
दीवाना करें.......
वहशत रज़ा अली
कलकत्वी
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