25 September 2020

6536 - 6540 आलम क़स्में इंतिज़ार ख़ामोशी आवाज़ ज़ुल्फ़ महक पलक क़दम आहट शायरी

 

6536
जिसे आनेकी,
क़स्में मैं दे के आया हूँ;
उसीके क़दमोंकी आहटका,
इंतिज़ार भी हैं.......
                          जावेद नसीमी

6537
ये ज़ुल्फ़-बर-दोश कौन आया,
ये किसकी आहटसे गुल खिले हैं...!
महक रही हैं फ़ज़ा-ए-हस्ती,
तमाम आलम बहारसा हैं.......!!!

6538
कोई आवाज़, आहट...
कोई हलचल हैं.....
ऐसी ख़ामोशीसे गुज़रे तो,
गुज़र जाएँगे.......
         अलीना इतरत

6539
किसने मेरी पलकोंपे.
तितलियोंके पर रखे...
आज अपनी आहट भी,
देर तक सुनाई दी.......!
बशीर बद्र

6540
इस अँधेरेमें,
इक गाम भी रुकना यारो...
अब तो इक दूसरेकी,
आहटें काम आएँगी.......
                       राजेन्द्र मनचंदा बानी

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