6536
जिसे न आनेकी,
क़स्में मैं दे के आया हूँ;
उसीके क़दमोंकी आहटका,
इंतिज़ार भी हैं.......
जावेद नसीमी
6537
ये ज़ुल्फ़-बर-दोश
कौन आया,
ये किसकी आहटसे गुल
खिले हैं...!
महक रही हैं
फ़ज़ा-ए-हस्ती,
तमाम आलम बहारसा
हैं.......!!!
6538
कोई आवाज़, न आहट...
न कोई हलचल हैं.....
ऐसी ख़ामोशीसे गुज़रे तो,
गुज़र जाएँगे.......
अलीना इतरत
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किसने मेरी पलकोंपे.
तितलियोंके
पर रखे...
आज अपनी आहट
भी,
देर तक सुनाई
दी.......!
बशीर बद्र
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इस अँधेरेमें,
न इक गाम भी रुकना यारो...
अब तो इक दूसरेकी,
आहटें काम आएँगी.......
राजेन्द्र
मनचंदा बानी
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