6516
कोई दस्तक, कोई आहट,
न सदा हैं कोई...
दूर तक रूहमें,
फैला हुआ सन्नाटा हैं...
वसीम मलिक
6517
अख़्तर गुज़रते लम्होंकी,
आहटपें यूँ न
चौंक...
इस मातमी जुलूसमें,
इक ज़िंदगी भी हैं.......
अख़्तर होशियारपुरी
6518
अपनी आहटपें,
चौंकता हूँ मैं...
किसकी दुनियामें,
आ गया हूँ मैं...
नोमान शौक़
6519
बहुत पहलेसे उन क़दमोंकी,
आहट जान लेते
हैं;
तुझे ऐ ज़िंदगी,
हम दूरसे पहचान लेते
हैं...!
फ़िराक़
गोरखपुरी
6520
किसी आहटमें आहटके सिवा,
कुछ भी नहीं अब...
किसी सूरतमें, सूरतके सिवा,
क्या रह गया हैं.......
इरफ़ान सत्तार
No comments:
Post a Comment