21 September 2020

6516 - 6520 ज़िंदगी दुनिया लम्हा सन्नाटा क़दम सूरत दस्तक आहट शायरी

 

6516
कोई दस्तक, कोई आहट,
सदा हैं कोई...
दूर तक रूहमें,
फैला हुआ सन्नाटा हैं...
                         वसीम मलिक

6517
अख़्तर गुज़रते लम्होंकी,
आहटपें यूँ न चौंक...
इस मातमी जुलूसमें,
इक ज़िंदगी भी हैं.......
अख़्तर होशियारपुरी

6518
अपनी आहटपें,
चौंकता हूँ मैं...
किसकी दुनियामें,
गया हूँ मैं...
                  नोमान शौक़

6519
बहुत पहलेसे उन क़दमोंकी,
आहट जान लेते हैं;
तुझे ऐ ज़िंदगी,
हम दूरसे पहचान लेते हैं...!
फ़िराक़ गोरखपुरी

6520
किसी आहटमें आहटके सिवा,
कुछ भी नहीं अब...
किसी सूरतमें, सूरतके सिवा,
क्या रह गया हैं.......
                                 इरफ़ान सत्तार

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