4 September 2020

6431 - 6435 दिल जिगर रूह उल्फ़त जख्म दर्द उम्र इलाज शायरी

 

6431
उल्फ़तके बदले उनसे,
मिला दर्द--ला-इलाज...
इतना बढ़े हैं दर्द,
मैं जितनी दवा करूँ.......
                  असर अकबराबादी

6432
उसका इलाज कोई,
मसीहा न कर सका...
जो जख्म मेरी,
रूहकी गहराईयोंमें था...

6433
इलाज--दिल तो,
तुमसे हो नहीं सकता...
उसपर भी बोलते हो,
मैं रो नहीं सकता.......

6434
हर दर्दका इलाज,
नहीं मिलता दवाखानेसे...
कुछ दर्द चले जाते हैं,
सिर्फ़ मुस्कुरानेसे.......

6435
इलाजकी नहीं हाजत,
दिल--जिगरके लिए...
बस इक नज़र तेरी,
काफ़ी हैं उम्र-भर के लिए.......
                       मुनव्वर बदायुनी

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