8 September 2020

6451 - 6455 दिल मोहब्ब़त ग़म अदा रिश्ते बेखबर आँख मासूम शायरी

 

6451
उनकी हर अदा ऐसी की,
हर अदापें आह निकले...
और वो मासूम बेखबर,
मिलती रही अंदाज बदले...!

6452
सोचते हैं जान अपनी,
उसे मुफ्त ही दें दें...
इतने मासूम खरीदारसे,
क्या लेना देना.......!

6453
बन्द लिफाफा थी,
अब तो इश्तहार हो गई...
मेरी मासूमसी मोहब्ब़त,
अखबार हो गई.......!

6454
कितना भी गहरा हो,
रिश्तेकी तरफ मत जाना...
उसके मासूमसे चेहरेकी,
तरफ मत जाना........

6455
खिलखिलाती हँसी गर बन सका तू,
तो ग़म वाला बादल ही बन जा;
दिलमें छा तू कोहरे जैसा,
और मासूम आँखोंसे टपककर देख ll

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