3636
जब कोई पास
होकर भी,
दूर होता हैं...
तब दिल अंदर
ही अंदर,
बहोत रोता हैं...!
3637
परिन्दोंकी फ़ितरतसे,
आए थे वो
मेरे दिलमें।
ज़रा पंख निकल
आए तो,
आशियाना
छोड दिया॥
3638
चेहरेसे पता
नहीं चलता,
दिलके गहरे जख्मोंका तडपना...
कोई किनारेपर बैठा
क्या जाने,
समुन्दर
कितना गहरा हैं...!
3639
गलत थी तुम
मोहब्बतमें,
पत्थरदिल कहती
थी मुझको...
बेवफाईने
तेरी मगर,
दिलके टुकड़े
टुकड़े हो गए.......
3640
समझा ना कोई
दिलकी बातको,
दर्द दुनियाने बिना
सोचे ही दे
दिया;
जो सह गए
हर दर्द चुपकेसे हम,
तो हमको ही
पत्थरदिल कह
दिया...!