7 December 2018

3636 - 3640 मोहब्बत दिल फ़ितरत अंदर आशियाना तडप जख्म गहरा बेवफा बात पत्थरदिल शायरी


3636
जब कोई पास होकर भी,
दूर होता हैं...
तब दिल अंदर ही अंदर,
बहोत रोता हैं...!

3637
परिन्दोंकी फ़ितरतसे,
आए थे वो मेरे दिलमें।
ज़रा पंख निकल आए तो,
आशियाना छोड दिया॥

3638
चेहरेसे पता नहीं चलता,
दिलके गहरे जख्मोंका ना...
कोई किनारेपर बैठा क्या जाने,
समुन्दर कितना गहरा हैं...!

3639
गलत थी तुम मोहब्बतमें,
पत्थरदिल कहती थी मुझको...
बेवफाईने तेरी मगर,
दिलके टुकड़े टुकड़े हो गए.......

3640
समझा ना कोई दिलकी बातको,
दर्द दुनियाने बिना सोचे ही दे दिया;
जो सह गए हर दर्द चुपकेसे हम,
तो हमको ही पत्थरदिल कह दिया...!

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