24 December 2018

3666 - 3670 दिल मोहब्बत चाह उम्मीद जिस्म ज़ख्म चोट मज़बूरी बात इम्तिहान बेवफा शायरी


3666
मालुम हैं वो अब भी,
चाहती हैं मुझे;
वो थोड़ी जिद्दी हैं,
मगर बेवफा नहीं...!

3667
मत रख हमसे वफाकी उम्मीद,
हमने हर दम बेवफाई पाई हैं;
मत धुंढ हमारे जिस्मपें ज़ख्मोके निशान,
हम ने हर चोट दिलपें खाई हैं...!

3668
उनसे अब कोसों दूर,
रखना मुझे खुदा;
यूँ बार बार बेवफाओंका सामना,
मेरे बसकी बात नहीं...!

3669
कुछ अलग ही करना हैं,
तो वफ़ा करो
मज़बूरीका नाम लेकर,
बेवफाई तो सभी करते हैं...

3670
वफाके बदले बेवफाई ना दिया करो,
मेरी उमीद ठुकराकर इन्कार ना किया करो;
तेरी मोहब्बतमें हम सब कुछ खो बैठे,
जान चली जायेगी इम्तिहान ना लिया करो...

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