25 December 2018

3671 - 3675 मोहब्बत खुशबू इंतजार रूह नादान जिस्म तड़प साँस कर्ज खुशबू कबूल झलक वफा शायरी


3671
वफाका जिकर होगा,
वफाकी बात होगी,
अब मोहब्बत जिससे भी होगी,
रुपये ठिकाने लगानेके बाद होगी...

3672
जो भी  मिले अपनोंसे,
करना कबूल हँसकर...
वफा थी पास मेरे,
वफा हम कर गये;
है उनके कर्जदार,
जो बहोत कुछ सिखा गये

3673
लौट आओ और मिलो उसी तड़पसे,
अब तो मुझे मेरी वफाओंका सिला दे दो;
इंतजार ख़त्म नहीं होता है आँखोंका,
किसी शब् अपनी एक झलक दे दो।

3674
अपनी वफ़ाका,
इतना दावा कर नादान...
मैने रूहको जिस्मसे,
बे-वफाई करते देखा हैं.......!

3675
समझ मैं भूल गया हूँ तुझे,
तेरी खुशबू मेरे साँसोमें आज भी हैं
मजबूरीयोंने निभाने दी मोहब्बत,
सच्चाई मेरी वफाओमें आज भी हैं

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