19 December 2018

3641 - 3645 ख्वाहिश नाराज़ मुश्किल तनहा माहिर मुसाफिर मंज़िल साथ अजीब जिंदगी शायरीमें


3641
नाराज़ होकर जिंदगीसे नाता नहीं तोड़ते,
मुश्किल हो राह फ़िर भी मंजिल नहीं छोड़ते;
तनहा ना समझना खुदको कभी,
हम उनमेसे नहीं हैं... जो कभी साथ हीं छोड़ते...!

3642
चलता रहूँगा मै पथपर,
चलनेमें माहिर बन जाऊंगा;
या तो मंज़िल मिल जायेगी,
या मुसाफिर बन जाऊंगा !

3643
"ख्वाहिशे तो मेरी छोटी छोटी थी,
पूरी हुई तो बड़ी लगने लगी...!"

3644
मिला तो बहुत कुछ हैं,
इस ज़िन्दगीमें...
बस गिनती उन्हीकी हुई,
जो हासिल ना हुए...!

3645
अजीब तरहसे
गुजर रहीं हैं जिंदगी
सोचा कुछ
किया कुछ
हुआ कुछ
और मिला कुछ...

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