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30 December 2018

3696 - 3700 मोहब्बत नफरत तारीख सम्भाल खर्च किराया आख़िरी खत्म संवर साल शायरी


3696
किसी सख़्त पिताकी तरह,
होता है "साल"...
मुट्ठीमें ढेरों तारीखें;
लेकिन खर्च करनेको,
रोज़ एक ही देता हैं...!

3697
काश के कोई मेरा अपना,
सम्भाल ले मुझको;
बहुत थोड़ा रह गया हूँ मैं भी,
इस सालकी तरह.......!

3698
"मोहब्बत" की तरह "नफरत" का भी,
सालमें एक ही दिन तय कर दो कोई
ये रोज़-रोज़की नफरतें,
अब अच्छी नहीं लगतीं...

3699
मेरे दिलमें रहने वालों,
अब तो किराया दे दो...
सालका आख़िरी दिन भी
गया हैं.......!

3700
मैं अगर खत्म भी हो जाऊँ,
इस सालकी तरह...
तुम मेरे बाद भी संवरते रहना,
नए सालकी तरह.......!