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23 August 2019

4641 - 4645 मोहब्बत लफ्ज़ रुख़्सार शाम सन्नाटा शोर आँख दस्तक रूह खामोश शायरी


4641
"कभी ख़ामोशी बोली उनकी,
कभी शब्द-निःशब्द कर गए...
एक उनके साथ जीनेकी जिद्दमें हम,
कई-कई मर्तबा मर गए...

4642
कोई तो करे शुरू,
रिवाज बातचीतका...
ये ख़ामोशी निगल गयी,
ना जाने "लफ्ज़" कितने...!

4643
तेरे "रुख़्सार" पर ढले हैं,
मेरी "शाम" के "किस्से...
"ख़ामोशी" से "मागी हुई,
"मोहब्बत" की "दुआ" हो तुम...!

4644
मेरी ख़ामोशीमें सन्नाटा भी हैं,
और शोर भी हैं...
मगर तूने देखा ही नहीं,
आँखोंमें कुछ और भी हैं...

4645
दस्तक और आवाज तो,
कानोंके लिए 
हैं;
जो रूहको सुनायी दे,
उसे खामोशी कहते 
हैं...