4641
"कभी
ख़ामोशी बोली उनकी,
कभी शब्द-निःशब्द
कर गए...
एक
उनके साथ जीनेकी जिद्दमें
हम,
कई-कई मर्तबा
मर गए...
4642
कोई तो करे शुरू,
रिवाज बातचीतका...
ये ख़ामोशी निगल गयी,
ना जाने "लफ्ज़" कितने...!
4643
तेरे
"रुख़्सार" पर ढले
हैं,
मेरी "शाम"
के "किस्से...
"ख़ामोशी"
से "मागी हुई,
"मोहब्बत" की "दुआ" हो
तुम...!
4644
मेरी ख़ामोशीमें सन्नाटा
भी हैं,
और शोर भी हैं...
मगर तूने
देखा ही नहीं,
आँखोंमें कुछ
और भी हैं...
4645
दस्तक और आवाज
तो,
कानोंके लिए हैं;
कानोंके लिए हैं;
जो रूहको
सुनायी दे,
उसे खामोशी कहते हैं...
उसे खामोशी कहते हैं...
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